गुरू भूकंप तभी आता है जब सब सेट होता है
“देखो, कुछ चीजें बताना ना हमको बड़ा मुश्किल सा लगता है. आप यूं कुछ और पूछ लो. नदी वाला किस्सा सुन लो या बाबा की बेंत का… पर यार देखो ये उस वाली किसी सरिता का नाम ना लिया करो. हमारी ज़िन्दगी बढ़िया एकदम कटती रहती है और तुम यार दिन दो दिन में आ ही जाते हो गड़े मुर्दे उखाड़ने”
ये नीलेश है ना भाव खाता है थोड़ा. लगता इसे भी बड़ा अच्छा है कि मैं आ जाता हूं. इसके मुर्दे उखाड़ने जो इससे तो गड़ने से रहे. खैर, सर्दियों का मौसम है, बाहर झांकें खिड़की से तो शाम उतर आई है. साहब बैठे हैं कमरे में कम्बल में लिपटे हुए. बैठे हम भी उनके पास ही हैं पर जब किस्सा सुनने का होता है तब हम थोड़ा दूर बैठ जाते हैं, क्या है कि इससे इनको फील आ जाता है.
“यार देखो ये डायलॅाग ना, हम जब नए-नए थे ना तब बड़ा कचोटता था अब हम पक्के बेशर्म हो चुके हैं. तुम बस जल्दी से कथा शुरू करो.”
और हां, मेरा नाम बसंत है. नीलेश और मैं एक-दूसरे को कुछ वर्षों से जानते हैं . इन्हें कहने का शौक है और हमें सुनने का. उम्र दोनों की चालीस पार है, बाकी ज्यादा हमने पूछा नहीं.
“चलो सुन लो यार क्या तुम भी याद रखोगे, पर देखो चाय मत मांगना बीच में, भाभी बाजार गई है तुम्हारी और हमसे लाला बनती नहीं.”
“अरे सुनाओ भी अब!”
“हां तो बात ऐसी है उन दिनों हम ग्रेजुएशन कर रहे थे. मौसम वही तुम्हारे नाम वाला और बडी सुहानी सी शामें हुआ करती थीं उन दिनों. एग्ज़ाम खत्म हो गए थे और गांव से बुलावा भी आ गया था, पिताजी ने एक लड़की देख ली थी हमारे लिए. कुल मिलाकर ये मानो कि सब सेट था.”
“गुरू भूकंप तभी आता है जब सब सेट होता है.” मैं बीच में बोल पड़ा .
“यार या तो हम बोल लें या तुम ही सुना लो.”
“अच्छा सॉरी भैया चलो सुनाओ.”
“हां तो जैसा तुमने कहा भूकंप के बारे मैं, लेकिन देखो भूकंप से पहले बडी प्यारी सी शांति होती है.” बस वहीं हम गिर पडे.
ब्रीफ में सुनाएं तो हमें बडा मन चला कि यार गांव लौटने से पहले एक दफा शहर तरीके से घूम लिया जाए. हम रोज़ निकल लेते कहीं ना कहीं, एक शाम निकले गुरू तो हम वहीं छोड आये अपने आप को. हमें बडे अच्छे से याद है, वही सुहानी शाम और झरने का बहता कलकल पानी. किनारे बैठी वो सुंदर लड़की, बसंत तुम्हारी कसम हमने उसके आगे और कुछ नहीं देखा. बड़े आराम से हम बैठकर बहुत देर तक उसे देखते रहे बस देखते रहे.
और मुझे याद है एक बार उसने पीछे मुडकर भी देखा था…”
“पक्का?”
“हां लिख के दे दें, आए बड़े पक्का वाले.”
“अच्छा फिर आगे…”
“आगे क्या होना था यार हम फिर अगले दिन वहीं पहुंच गए , किस्मत देखो वो आज भी आई थी.”
फिर वही देखना-पलटना. बस ये समझो दूरी कम हो गई थी. कुछ दिनों बाद तो हम पास बैठने लगे थे, वो अपलक शून्य में निहारती रहती हमेशा, उसे शायद झरने में भी कुछ स्थिरता दिखती होगी, जब मेरी तरफ देखती तो कभी हल्के से मुस्कुरा देती .
एक दिन मैंने यूं ही कह दिया, “क्या आप रोज़ आती हैं यहां?”
गिने हुए दो सेकंड के मौन के बाद उसने कहा, “जैसे आपको पता ही ना हो…” और फिर हंस पडी.
तुम्हे पता है बसंत, दुनिया में बहुत कुछ महसूस होता है. तुम्हें क्या होता है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि तुम क्या होते हुए देखना चाहते हो और हर बीते पल में मैं उसे मेरे प्रेम में पड़ते हुए देखना चाहता था. इसके बाद हमने काफ़ी बातें की, बातें करते-करते मैं उसके करीब खिसक आया था.
उसे हमेशा से सब मालूम होता था. नाम सरिता था. शहर में ही पढ़ती थी, गहरे भूरे रंग की आंखे, घने बाल, तीखे नक्श. दुनिया की ऐसी कोई खूबसूरती ना होगी जिसने उसको ना छुआ हो .
उसे हमेशा से सब मालूम होता था. नाम सरिता था. शहर में ही पढ़ती थी, गहरे भूरे रंग की आंखे, घने बाल, तीखे नक्श. दुनिया की ऐसी कोई खूबसूरती ना होगी जिसने उसको ना छुआ हो .
जाते-जाते उसने पूछा क्या मैं कल आऊंगा. भला मैं ना क्यों करता. सारी रात मुझे अगले दिन का इंतज़ार रहा. दोपहर ना जाने कैसे-कैसे कटी पर आखिर में हम दोनों फिर वहीं बैठे थे. बातें होती रहीं और शामें गुजरती गईं. सरिता अच्छी लडकी थी, मुझे बहुत समझती थी. हमारा एक दूसरे के प्रति आकर्षण कब प्रेम में बदल गया पता ही नहीं चला.
मुझे उससे मिलकर लगा कि इस संसार में हर इंसान के लिये एक दूसरा इंसान है. जिसके साथ रहते हुए आपको तर्क की जरूरत नहीं रहती. शब्दों के पार जो भावनाएं होती हैं. उनके लिए वो पहले दिन भी उतनी ही महसूस होती हैं जितनी एक समय बाद. हमें बस पता होता है हम एक-दूसरे के लिए बने होते हैं.
ये कितना अच्छा है ना बसंत ?”
“हां”
मैंने कहा ‘वैसे कई बार ऐसा हुआ था, कुछ सुनने से पहले मुझे लगता रहता था कि नीलेश उतना गहरा व्यक्ति नहीं है. लेकिन कभी-कभी वो मुझसे कुछ ऐसा मत पूछ लेता जिसके बारे में शायद ही कभी मैंने सोचा हो.
“खैर सुनो, अब इस प्रेमपाश में हम एक बार को भूल गए कि हमको वापस गांव भी जाना है.”
एक दिन पिताजी का फोन आया तो बोले, बेटा घर आना है कि नहीं? अब हम क्या कहते. एग्ज़ाम तो खत्म हो चुकी थी, कोई बहाना भी नहीं था.
ऊपर से पिताजी ने दोहराया कि उन्होंने कोई लड़की भी देख रखी है. हमारा इंतज़ार किया जा रहा है घर पे. हमने ऐसे ही पूछ लिया लड़की का नाम क्या है
पिताजी बोले , ‘सरिता’ .
ऊपर से पिताजी ने दोहराया कि उन्होंने कोई लड़की भी देख रखी है. हमारा इंतज़ार किया जा रहा है घर पे. हमने ऐसे ही पूछ लिया लड़की का नाम क्या है
पिताजी बोले , ‘सरिता’ .
यार बसंत कभी-कभी दिल रुक सा जाता है ना बस वही समझ लो. अब ये तो कोई उम्मीद थी नहीं कि दोनो सरिता एक हो जाएं पर हमारे लिये बड़ी समस्या हो गयी थी. रात भर सरिता का चेहरा सामने आता रहा , मैं उसे बयान करूं तो उसकी खूबसूरती कम हो जाएगी . मुझे मेरी हर कल्पना में वो वहीं बैठी दिखती थी बहते झरने में अपलक स्थिरता तलाशती हुई. माफ करना पर मुझे उससे जितना प्रेम था उसे मैं कभी शब्दों में नहीं ढाल सकता.
अगले दिन मैंने सरिता को सब बताया . उसने कहा , नीलेश तुम एक अच्छे इंसान हो और मुझे तुमसे प्रेम है. किसी भी दूसरे प्रेमी की तरह मैं भी यही चाहती हूं कि हम साथ रहें. तुम जिसे चाहो उसे चुन सकते हो. मेरा ह्रदय तुम्हारे लिये हमेशा ही सच्चा था और हमेशा रहेगा. तुम जिस भी सरिता को चुनो, उसे प्रेम जरूर करना.
बस इतना कहकर उसने मुझे गले लगा लिया.”
नीलेश इतना कहकर रुक गया.
“हां तो फिर आगे क्या हुआ, तुमने कौन सी सरिता को…”
मेरा सवाल अधूरा ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई.
“कौन?”
नीलेश ने पूछा
“अरे मैं हूं.”
“रुको आता हूं, सरिता.”
नीलेश मुस्कुराते हुए खड़ा हुआ और दरवाजे की तरफ चल पड़ा.
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